जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि - Inspiring Story for the youth

एक बार चक्रवर्ती सम्राट अशोक की सभा में एक व्यापारी ने प्रवेश किया । सम्राट अशोक की दृष्टि उस पर पड़ी तो उसे देखते ही अचानक उनके मन में विचार आया कि कुछ ऐसा किया जाए ताकि इस व्यापारी की सारी संपत्ति छीनकर राजकोष में जमा कर दी जाए ।

व्यापारी जब तक वहां रहा सम्राट का मन रह रहकर उसकी संपत्ति को हड़प लेने का करता । कुछ देर बाद व्यापारी चला गया ।

उसके जाने के बाद उनको अपने राज्य के ही एक निवासी के लिए आए ऐसे विचारों के लिए बड़ा खेद होने लगा ।

सम्राट अशोक ने सोचा कि मैं तो प्रजा के साथ न्यायप्रिय रहता हूँ, आज मेरे मन में ऐसा कलुषित विचार क्यों आया?

उन्होंने अपने मंत्री से सारी बात बताकर समाधान पूछा । मन्त्री ने कहा- इसका उत्तर देने के लिए आप मुझे कुछ समय दें । मंत्री विलक्षण बुद्धि का था, वह इधर-उधर के सोच-विचार में समय न खोकर सीधा व्यापारी से मैत्री गाँठने पहुँचा । व्यापारी से मित्रता करने के बाद उसने पूछा- मित्र तुम चिन्तित क्यों हो? भारी मुनाफे वाले चन्दन का व्यापार करते हो, फिर चिंता कैसी?

व्यापारी बोला- मेरे पास उत्तम कोटि के चंदन का बड़ा भंडार जमा हो गया है । चंदन से भरी गाडियां लेकर अनेक शहरों के चक्कर लगाए पर नहीं बिक रहा है, बहुत धन इसमें फंसा पडा है । अब नुकसान से बचने का कोई उपाय नहीं है.

व्यापारी की बातें सुनकर मंत्री ने पूछा- क्या हानि से बचने का कोई उपाय नहीं? व्यापारी हंसकर कहने लगा- अगर सम्राट अशोक की मृत्यु हो जाए तो उनके दाह-संस्कार के लिए सारा चन्दन बिक सकता है । अब तो यही अंतिम मार्ग दिखता है ।

व्यापारी की इस बात से मंत्री को सम्राट के उस प्रश्न का उत्तर मिल चुका था जो उन्होंने व्यापारी के संदर्भ में पूछा था ।

मंत्री ने कहा- तुम आज से प्रतिदिन सम्राट का भोजन पकाने के लिए चालीस किलो चन्दन रसोई भेज दिया करो. पैसे उसी समय मिल जाएंगे ।

व्यापारी यह सुनकर बड़ा खुश हुआ । प्रतिदिन और नकद चंदन बिक्री से तो उसकी समस्या ही दूर हो जाने वाली थी । वह मन ही मन सम्राट के दीर्घायु होने की कामना करने लगा ताकि सम्राट की रसोई के लिए चंदन लंबे समय तक बेचता रहे ।

एक दिन सम्राट अपनी सभा में बैठे थे. वह व्यापारी दोबारा सम्राट के दर्शनों को वहां आया । उसे देखकर सम्राट के मन में विचार आया कि यह कितना आकर्षक व्यक्ति है, इसे कुछ पुरस्कार स्वरूप अवश्य दिया जाना चाहिए ।

सम्राट अशोक ने मंत्री से कहा- यह व्यापारी पहली बार आया था तो उस दिन मेरे मन में कुछ बुरे भाव आए थे और मैंने तुमसे प्रश्न किया था । आज इसे देखकर मेरे मन के भाव बदल गए । इसे दूसरी बार देखकर मेरे मन में इतना परिवर्तन कैसे हो गया?

मन्त्री ने उत्तर देते हुए कहा- सम्राट ! मैं आपके दोनों ही प्रश्नों का उत्तर आज दे रहा हूँ । यह जब पहली बार आया था तब यह आपकी मृत्यु की कामना रखता था, अब यह आपके लंबे जीवन की कामना करता रहता है ।

इसलिए आपके मन में इसके प्रति दो तरह की भावनाओं ने जन्म लिया है ।

“जैसी भावना अपनी होती है, वैसा ही प्रतिबिम्ब दूसरे के मन पर पडने लगता है, यह एक मनोवैज्ञानिक सत्य है ।”

हम किसी व्यक्ति का मूल्यांकन कर रहे होते हैं तो उसके मन में उपजते भावों का उस मूल्यांकन पर गहरा प्रभाव पड़ता है ।

इसलिए जब भी किसी से मिलें तो एक सकारात्मक सोच के साथ ही मिलें ।

ताकि आपके शरीर से सकारात्मक ऊर्जा निकले और वह व्यक्ति उस सकारात्मक ऊर्जा से प्रभावित होकर आसानी से आप के पक्ष में विचार करने के लिए प्रेरित हो सके क्योंकि,

जैसी दृष्टि होगी, वैसी सृष्टि होगी”

Comments

Popular posts from this blog

जिंदगी मे सिर्फ शिक्षा ही काफी नही है ।

माँ तो माँ होती है। क्या मेरी, क्या तेरी ?

चाणक्य - सुंदरता व प्रतिभा में से कौन बड़ा है?

कर्म बड़ा या भाग्य ?