गुरुनानक के गांव में डाकू!

गुरुनानक के गांव में एक डाकू था । उसे डाका डालते डालते आत्मग्लानि होने लगी। लेकिन डाका डालने की आदत नहीं छूट पा रही थी। परेशान हो कर एक दिन गुरुनानक के पास पहुंचा और अपनी परेशानी बताई गुरुनानक ने कहा कि चल अभी मेरे सामने प्रतिज्ञा ले कि आज से डाका डालना और सभी गलत काम करना तू छोड़ देगा। और जा अब सात दिन के बाद मेरे पास आना।

सात दिन बाद डाकू नानक के पास आया और रोते हुए कहा कि मेरी प्रतिज्ञा दो दिन भी नहीं टिक सकी मुझे माफ करें और कोई दूसरा रास्ता बतायें। नानक बोले- ठीक है एक रास्ता और है, तुझे दिन भर जो करना है कर लेकिन रोज शाम सारे गांव वालों को इकट्ठा कर के तूने दिनभर जो जो काम किये है वो पूरी ईमानदारी से सच सच बता दिया कर। और सात दिन के बाद मेरे पास आना, डाकू खुश हो के चला गया कि ये तो बहुत आसान काम है।


लेकिन चार दिन में ही वो गुरुनानक के चरणों में जा गिरा , इस बार वह एक अलग तरह का व्यक्ति हो चुका था नानक ने पूछा कि क्या हुआ? डाकू बोला कि - रोज रोज अपने गलत कामों का गांव वालों के सामने बखान करते करते मुझे शर्म आने लगी, उनसे आंखें नहीं मिला पाता था इसलिए सारे गलत काम मुझसे छूट गये।

स्वयं के प्रति ईमानदार हो जाना , बड़ी ही सार्थक और असरदार विधि है लेकिन चार दिन में ही वो नानक के चरणों में जा गिरा , इस बार वह एक अलग तरह का व्यक्ति हो चुका था नानक ने पूछा कि क्या हुआ? डाकू बोला कि - रोज रोज अपने गलत कामों का गांव वालों के सामने बखान करते करते मुझे शर्म आने लगी, उनसेआंखें नहीं मिला पाता था इसलिए स्वयं के प्रति ईमानदार हो जानाबड़ी ही सार्थक और असरदार विधि है इसके लिए किसी धर्म, सम्प्रदाय, गुरु-समर्पण , ग्रंथ, आश्रम की जरूरत नहीं है। बस इसे ही 'साध ना' है l

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