मीठा बोलिये सुखी रहिये

एक था राजा, बहुत कड़वा बोलता था । प्रत्येक को गाली, प्रत्येक को ताना, प्रत्येक को धमकी ! अब राजा के आगे बोले कौन? एक दिन राजा ने अपने दरबारियों से कहा- जो-जो आदमी जिस वस्तु को सबसे अधिक बुरा समझता है, उसे मेरे पास लाओ। दूसरे दिन कोई आदमी तो मल मूत्र उठाकर ले गया, कोई कीचड़, कोई सड़ा गला पदार्थ । एक बुद्धिमान आदमी एक मृत पुरुष की जीभ काटकर ले गया। राजा ने उस जीभ को देखकर पूछा-इसमें क्या बुराई है? उस आदमी ने कहा महाराज बुराइयों की जड़ तो यही है। तलवार के काटे का इलाज है, परन्तु कड़वी बात से हृदय पर जो घाव हो जाता है उसका कोई उपचार नहीं। और यह जीभ ही है जो कड़वी बात बोलती है । 

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राजा को कुछ लज्जा अनुभव हुई कि सबसे कड़वा तो मैं ही बोलता हूं । परन्तु वह चुप रहा। दूसरे दिन उसने दरबारियों को कहा- जिस जिसको जो वस्तु सबसे अधिक अच्छी लगती है, उसको मेरे पास लेकर आओ। दूसरे दिन कोई आदमी घी लाया, कोई चीनी, कोई शहद, कोई फूल। परन्तु बुद्धिमान आदमी आज फिर एक मृतक की जीभ काटकर ले आया। राजा ने कहा अरे ! तू तो कहता था कि जीभ से अधिक बुरी कोई वस्तु नहीं । आज तुझे सबसे अधिक अच्छी वस्तु लाने के लिए कहा था, तू फिर जीभ ही ले आया ? उस आदमी ने कहा- महाराज ! - जीभ सबसे अधिक बुरी वस्तु भी ह, और सबसे अधिक अच्छी , वो वस्तु भी है। जब ये मीठा बोलती है, सम्मान से, आदर से प्यार से बोलती है। जब ये स्वामी का नाम लेती है, भगवान का नाम लेती है तो इससे अधिक अच्छी कोई वस्तु नहीं होती । तो भाई जीभ से, ठीक तरीके से काम लो। याद रखो जीभ पर लगी चोट सबसे जल्दी ठीक होती है पर जीभ से लगी चोट जिंदगी भर ठीक नहीं होती ।

 है भीतरी बात-गहरी बात- रहिमन 

जिव्हा बावरी कह गई सर्ग पाताल। 

आप तो कह भीतर भई जूता खात कपाल ।। 


-ललित 'अकिंचन'

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